लेखनी प्रतियोगिता -08-Apr-2022 एक नई दिशा
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
शीर्षक-एक नई दिशा
उठ आज तू, जाग आज तू
सूरज की तपिश में आगे बढ़ तू
बढ़ता चला जा एक दिशा में तू
जिंदगी की राहों में सलीको का एतराम कर तू
अपने पर भरोसा, खुद पर एतबार कर तू
बांध एक नहीं डोर तू
मत डर की अंधेरा घना है
सूरज की तपिश में उजाला घना है
सूरज की तपन से, जला एक दीप तू
तपन की राहों में आगे बढ़ तू
सारी दुनिया जगमगा दे तू
देगा वही अंधेरे में सहारा
वही तो है सारी दुनिया में हमारा
छोड़ देते हैं राहों में अपने
संकट देखकर मुड़ जाते हैं पीछे
पलकों में बैठकर भिगो देते हैं पलकें
क्यों अपना रहा है मायाजाल
त्याग दें तु मोह माया का जाल
छोड़ गई तो छोड़ जाने दे तू
हीरा में तपिश को अपनाने दे तू
ये तो बस इंसान है
कुछ दिन के मेहमान हैं
सूरज की तपन तूझे
देगी एक नहीं चमक
एक दिन बन जाएगा सूरज तू
लो अपने में समा कर देख तू
एक दिन उजाला बन जाएगा तू
एक नई दिशा की ओर बढ़ तू
"अपना ईश्वर तू ही है खुद है, जाग जाग रे मानव जाग, जाग शिव है, सोया शव हैं, त्याग, त्याग तब निद्रा त्याग
Reyaan
10-Apr-2022 01:35 PM
Very nice
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Shrishti pandey
09-Apr-2022 11:46 AM
Nice
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Punam verma
09-Apr-2022 07:59 AM
Very nice
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